हमारे शरीर के विकास से लेकर बौद्धिक विकास तक, ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि हमें कैसा भोजन मिल रहा है, लेकिन यह दुखद है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर जन-जागरूकता का अभाव है, यही कारण है कि आज बदल रहे जलवायुविक परिस्थितियों में हमारा शरीर आसानी से खुद को ढाल नहीं पा रहा है और गम्भीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। हमारा शरीर प्रकृति प्रदत्त है और इसके विकाश के लिये हवा,पानी व भोजन की व्यवस्था भी प्रकृति ने ही की है लेकिन औद्योगीकरण की आंधी ने प्रकृति प्रदत्त इन तीनों चीजों को जहरीला कर दिया है। अधिक उत्पादन की होड़ में रसायनिक खाद, कीटनाशक, खर-पतवार नाशकों, के रूप में अंधाधुंध केमिकल खेतों में डाला जा रहा है, जो जमीन को बंजर करने के साथ, पानी और हवा को भी विषैला कर रहा है। इस प्रकार जो भी अनाज, फल, सब्जियां पैदा हो रही हैं वे हीं विषैली है। वहीं दूसरी ओर फूड प्रोसेसिंग कम्पनियां अधिक सेल बढ़ाने के लिये प्रिजर्वेटिव, रंग व स्वाद के लिये घातक रसायनों का बेतहाशा प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि हर रोज भोजन के साथ हमारे शरीर में विषैले रसायन जा रहे हैं, जो धीरे-2 हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम रहे हैं और यह बात कोरोना ने सबको बता दिया है। मेरी आप सबसे अपील है कि खूबसूरत पैकिंग, रंग, व आकर्षक खुशबू जैसी बनावटी बातों के स्थान पर प्राकृतिक गुणों से युक्त भोजन अपनाते।तभी आप खुद को और अपने परिवार को आगे आने वाले समय में स्वस्थ व सुरक्षित रख पायेंगे।